आइए लॉकडाउन को न्याय दिलाने में डिजिटल प्रणाली को और मजबूत बनाने के अवसर के रूप में लें: श्री रविशंकर प्रसाद
केन्द्रीय विधि और न्याय मंत्री श्री रविशंकर प्रसाद ने भारत के अटॉर्नी जनरल की अध्यक्षता में विधि अधिकारियों के एक दल से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये आज बातचीत की। भारत के अटॉर्नी जनरल,श्री के. के. वेणुगोपाल,सॉलीसिटर जनरल श्री तुषार मेहता, सभी अतिरिक्त सॉलीसिटर जनरल और सहायक सॉलीसिटर जनरल, विधि मामलों के विभाग में सचिव और न्याय विभाग के सचिव ने इस बैठक में भाग लिया। कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए लागू लॉकडाउन के दौरान आयोजित अपनी तरह की यह पहली वर्चुअल बैठक है।
विधि मंत्री ने अपनी प्रारंभिक टिप्पणी में कहा कि हम चुनौतीपूर्ण समय में रह रहे हैं और प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी टीम इंडिया के रूप में देश का नेतृत्व कर रहे हैं जहां सरकारऔर सभी राज्य सरकारें चुनौती से निपटने के लिए उपयुक्त कार्रवाई करने के बारे में अक्सर बातचीत करती हैं। श्री प्रसाद ने विधि अधिकारियों को बताया कि लॉकडाउन की आवश्यकता और उससे उत्पन्न चुनौतियों से निपटने के बारे में सर्वसम्मति तक पहुंचने के लिए प्रधानमंत्री ने स्वयं मुख्यमंत्रियों के साथ अनेक वर्चुअल बैठकें की। मंत्रिमंडल सचिव और स्वास्थ्य सचिव विभिन्न मुख्य सचिवों और स्वास्थ्य सचिवों के साथ बातचीत कर रहे हैं। विस्तृत जानकारी के आधार पर, गृह मंत्रालय, स्वास्थ्य मंत्रालय और अन्य संबंधित मंत्रालयआपदा प्रबंधन कानून के तहत दिशानिर्देश जारी करते हैं।
विधि मंत्री ने विशेष रूप से इस बात पर जोर दिया कि इस तरह की गंभीर महामारी से निपटना जटिल और संवेदनशील चुनौतीपूर्ण कार्य है, जिसके लिए शासन व्यवस्था उत्तरदायी है और यह उचित होगा कि भारत सरकार और राज्य सरकारों की निर्णय प्रक्रिया पर भरोसा किया जाए। अटॉर्नी जनरल ने भी इस दृष्टिकोण का समर्थन किया और विशेष रूप से प्रकाश डाला कि अदालतों को इसकी सराहना करने की आवश्यकता है। सॉलीसिटर जनरल श्री तुषार मेहता ने दायर किए गए मामलों की प्रकृति और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा समय-समय पर पारित किए गए आदेशों की व्याख्या की, जिसने सरकार द्वारा जारी दिशा-निर्देशों और की गई कार्रवाई को बरकरार रखा है।
विधि मंत्री ने विशेष रूप से प्रकाश डाला कि इन चुनौतीपूर्ण समय में कट्टर पीआईएल से बचा जाना चाहिए। हालाँकि किसी को भी मामला दर्ज करने से नहीं रोका जा सकता है लेकिन इस प्रकार के हस्तक्षेपों पर प्रभावी प्रतिक्रिया होनी चाहिए। इसकी अटॉर्नी जनरल और अन्य सभी विधि अधिकारियों ने सराहना की। न्याय विभाग में सचिव ने ई-कोर्ट और अन्य घटनाक्रमों पर प्रकाश डाला जो इसे और अधिक प्रभावी बनाने के लिए किए जा रहे हैं। उन्होंने साझा किया कि लॉकडाउन के दौरान ऐसे अधिवक्ताओं की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है जिन्होंने मामलों का ई-फाइलिंग के लिए पंजीकरण कराया है। 1282 अधिवक्ताओं ने लॉकडाउन के दौरान याचिकाओं की ई-फाइलिंग के लिए पंजीकरण कराया है, जिसमें से 543 अधिवक्ताओं ने अकेले पिछले एक सप्ताह में पंजीकरण कराया है। विधि कार्य विभाग के सचिव ने कोविड-19 से जुड़े दायर मामलों को समझने के लिए कानून मंत्रालय में उपलब्ध समन्वय प्रणाली के बारे में बताया। इस बारे में आम सहमति थी कि हमारे दृष्टिकोण में एकरूपता होनी चाहिए और उच्चतम न्यायालय के आदेशों की तुरंत विभिन्न उच्च न्यायालयों को जानकारी दी जानी चाहिए।
अटॉर्नी जनरल और अनेक अन्य विधि अधिकारियों ने जोर देकर कहा कि सम्पर्क से जुड़े मुद्दों का समाधान करके और ई-कोर्ट प्रबंधन में वकीलों के प्रशिक्षण द्वारा ई-कोर्ट प्रणाली को मजबूत करने की आवश्यकता है। विधि मंत्री ने सचिव न्याय को निर्देश दिया जो समिति के समक्ष इन चुनौतियों को लाने और एनआईसी और अन्य एजेंसियों के साथ समन्वय स्थापित करने और व्यवस्था में सुधार करने में समन्वय के लिए सुप्रीम कोर्ट की ई-कोर्ट समिति के सदस्य भी हैं। यह महसूस किया गया था कि महामारी की गंभीरता को देखते हुए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये अदालत की कार्यवाही आने वाले कुछ समय के लिए एक मानक बन सकती है। विधि मंत्री ने विशेष रूप से लॉकडाउन को न्याय दिलाने में डिजिटल प्रणाली को और मजबूत बनाने के अवसर के रूप में लेने पर जोर दिया।
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