सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार यानी आज एक अहम फैसले में व्यभिचार कानून को असंवैधानिक करार देते हुए इसे अपराध मानने से इनकार कर दिया है. अदालत की 5 जजों की पीठ ने कहा कि यह कानून असंवैधानिक और मनमाने ढंग से लागू किया गया था.
सुप्रीम कोर्ट ने एडल्टरी कानून पर आज अपना फैसला सुनाया। आईपीसी की धारा 497 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर अगस्त में सुनवाई पूरी होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। गुरुवार को चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस मामले पर फैसला सुनाया। फैसला पढ़ते वक्त चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि पति पत्नी का मालिक नहीं है। महिला की गरिमा सबसे ऊपर है और उसका अपमान नहीं किया जा सकता है। महिला के सम्मान के खिलाफ आचरण गलत है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा 497 महिला और पुरुष में भेदभाव दर्शाता है।
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि आईपीसी की धारा 497 असंवैधानिक है। महिला के सम्मान के खिलाफ आचरण गलत है और हर पुरुष को यह बात समझनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ में जस्टिस आर.एफ. नरीमन, जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस इंदू मल्होत्रा और जस्टिस ए.एम. खानविलकर शामिल हैं।
इस मामले में केंद्र पहले ही अपना हलफनामा दायर कर चुकी है। बता दें कि स्त्री-पुरुष के विवाहेतर संबंधों से जुड़ी भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा-497 पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने यह फैसला सुनाया है। केरल के एक अनिवासी भारतीय जोसेफ साइन ने इस संबंध में याचिका दायर करके आईपीसी की धारा-497 की संवैधानिकता को चुनौती दी थी। कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई की कि व्यभिचार अपराध की श्रेणी में आता है या नहीं। इस मामले में कोर्ट 8 अगस्त को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।