भारत में हर साल कैंसर से 8.51 लाख लोगों की मृत्यु होती है (इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर, 2020, ग्लोबोकैन का कथन)। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, 10 में से एक भारतीय को उसके अपने जीवनकाल में कैंसर विकसित होगा, और 15 में से एक की मृत्यु कैंसर से होगी। इसलिए, इस घातक बीमारी के उपचार के लिए असाधारण प्रयास और नए तौर-तरीकों की खोज करना और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। कैंसर के इलाज के लिए नए तौर-तरीकों को सफलतापूर्वक लागू करने के लिए जैव प्रौद्योगिकी विभाग के अधीन एक स्वायत्त निकाय के नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय रोग प्रतिरक्षण संस्थान-नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इम्यूनोलॉजी (एनआईआई) के शोधकर्ता और कैंसर संस्थान, अड्यार, चेन्नई के चिकित्सक नई वैज्ञानिक खोजों का कैंसररोगियों की बेहतर देखभाल में प्रयोग करने के लिए मिलकर काम कर रहे हैं। पिछले दो दशकों में, ये शोधकर्ता और चिकित्सक संयुक्त रूप से उन विधाओं पर काम कर रहे हैं जिनसे कैंसर, विशेषकर लक्षित कैंसर इम्यूनोथेरेपी में उपलब्ध उपचारों के लिए एक और अधिक प्रभावपूर्ण उपचार मिल सकेगा। भारत के पहले स्वदेशी ट्यूमर एंटीजन एसपीएजी9 की खोज 1998 में डॉ अनिल सूरी ने की थी, जो राष्ट्रीय रोग प्रतिरक्षण संस्थान -एनआईआई में कैंसर अनुसंधान कार्यक्रम का नेतृत्व कर रहे हैं। हाल के एक घटनाक्रम में, एसपीएजी9 एंटीजन को ट्रेडमार्क एएसपीएजीएनआईआईटीएम प्राप्त हुआ है। वर्तमान में, एएसपीएजीएनआईआईटीएम का उपयोग गर्भाशय (सर्विकल), डिम्बग्रंथि के कैंसर में डेंड्राइटिक सेल (डीसी) आधारित इम्यूनोथेरेपी में किया जा रहा है और इसका उपयोग स्तन कैंसर में भी किया जाएगा।
इम्यूनोथेरेपी एक नई विधा है जो कैंसर से लड़ने के लिए शरीर की आंतरिक क्षमता का उपयोग करती है। इसके अंतर्गत या तो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को और बढाया जाता है, या फिर टी कोशिकाओं को “प्रशिक्षित” किया जाता है ताकि वे फिर बड़ी संख्या में विकसित हो जाने वाली कैंसर कोशिकाओं की पहचान करने के बाद और उन्हें समाप्त कर (मार) सकें। इस व्यक्तिगत हस्तक्षेप में, जिन रोगियों में एसपीएजी9 प्रोटीन की उपस्थिति मिलती है उनका इलाज डीसी-आधारित वैक्सीन (टीके) का प्रयोग करके किया जा सकता है। डीसी-आधारित टीके में, रोगी के रक्त से मोनोसाइट्स नामक कोशिकाओं को एकत्र किया जाता है और उन्हें डेंड्राइटिक कोशिकाओं के रूप में में परिष्कृत किया जाता है। इन डेंड्राइटिक कोशिकाओं को एएसपीएजीएनआईआईटीएम के साथ जोड़कर अनुकूल किया जाता है और कैंसर कोशिकाओं को मारने के लिए शरीर में ‘लड़ाकू’ कोशिकाओं, या टी-कोशिकाओं की मदद करने के लिए रोगी के शरीर में वापस इंजेक्शन के माध्यम से पहुंचा दिया जाता है। डीसी-आधारित रोग प्रतिरक्षण चिकित्सा (इम्यूनोथेरेपी) सुरक्षित और सस्ती है और कैंसर रोगियों के एंटीट्यूमर प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाओं और लंबे समय तक जीवित रहने को बढ़ावा दे सकती है।
जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने कैंसर अनुसंधान कार्यक्रम को वित्त पोषित किया है। डॉ अनिल सूरी ने कहा, “हम जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) के आभारी हैं कि उन्होंने हमें इतने सालों तक काम करने के लिए स्थान और आवश्यक समर्थन दिया।” डॉ सूरी के सहयोगी डॉ. टी राजकुमार, एमडी, डीएम, प्रमुख, आणविक ऑन्कोलॉजी, कैंसर संस्थान, अड्यार, चेन्नई में गर्भाशय (सर्विकल) कैंसर के रोगियों में नैदानिक परीक्षण कर रहे हैं। डॉ टी राजकुमार को कैंसर रोग प्रतिरक्षण (इम्यूनोथेरेपी) केंद्र स्थापित करने और इन कैंसर परीक्षणों को शुरू करने के लिए भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा वित्तीय सहायता दी गई है। साथ ही, डॉ सूरी और डॉ टी राजकुमार को डेंड्राइटिक सेल का उपयोग करके नैदानिक परीक्षण करने के लिए भी वित्त पोषित किया गया है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान केंद्र (आईसीएमआर) द्वारा वित्त पोषित एएसपीएजीएनआईआईटीएम को नियोजित करने वाले 75 आवर्तक/मेटास्टेटिक डिम्बग्रंथि के कैंसर चरण –चार (IV) रोगियों में आधारित टीका इसके अलावा, भविष्य में जैव प्रौद्योगिकी विभाग के वित्त पोषण समर्थन के साथ, एएसपीएजीएनआईआईटीएम का सुनियोजित प्रयोग करते हुए, आवर्तक हार्मोन रिसेप्टर-नकारात्मक स्तन कैंसर में मेट्रोनोमिक कीमोथेरेपी और डेंड्राइटिक सेल वैक्सीन की भूमिका का मूल्यांकन करने के लिए चरण-2 का कहीं से भी (रैनडोमाइजड) नियंत्रित नैदानिक परीक्षण भी कैंसर संस्थान अड्यार में शुरू किया जाएगा।
एएसपीएजीएनआईआईटीएम रूपांतरित (ट्रांसलेश्नल) कैंसर अनुसंधान और आत्मनिर्भर भारत की भावना का एक सच्चा उदाहरण है। अंततोगत्वा यह भारत और दुनिया के रोगियों के लिए मददगार होगा। यह कैंसर के इलाज के लिए किफायती, व्यक्तिगत और स्वदेशी उत्पादों में वास्तविक रूप से मनोबल बढ़ाने वाला होगा।