वन संसाधनों के प्रबंधन में अनुसूचित जनजातियों एवं अन्य पारंपरिक वनवासियों का और अधिक सशक्तिकरण

वन संसाधनों के प्रबंधन में अनुसूचित जनजातियों एवं अन्य पारंपरिक वनवासियों का और अधिक सशक्तिकरण

जनजातीय कार्य मंत्रालय और पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने संयुक्त रूप से वन संसाधनों के प्रबंधन में जनजातीय समुदायों को और अधिक अधिकार देने का निर्णय लिया है। इस आशय के एक “संयुक्त वक्तव्य” पर कल सुबह 11 बजे नई दिल्ली स्थित इंदिरा पर्यावरण भवन में हस्ताक्षर किए जायेंगे।

हस्ताक्षर का यह कार्यक्रम हाइब्रिड मोड में होगा और इसमें वन सचिव रामेश्वर प्रसाद गुप्ता, जनजातीय सचिव अनिल कुमार झा और सभी राज्यों के राजस्व सचिव भाग लेंगे।

जनजातीय कार्य मंत्री अर्जुन मुंडा और पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रकाश जावडेकर इस कार्यक्रम को संबोधित करेंगे। इस कार्यक्रम में पर्यावरण राज्यमंत्री बाबुल सुप्रियो और जनजातीय कार्य राज्यमंत्री रेणुका सिंह सरुता भी शामिल होंगी।

यह संयुक्त वक्तव्य अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006, जिसे आमतौर पर वन अधिकार अधिनियम (एफआरए) के रूप में जाना जाता है, के कारगर कार्यान्वयन से संबंधित है।

यह अधिनियम जंगल में रहने वाले उन अनुसूचित जनजातियों (एफडीएसटी) और अन्य पारंपरिक वनवासियों (ओटीएफडी) के वन भूमि में वन अधिकारों और पेशे को मान्यता देता है और इन अधिकारों को उनमें निहित करता है जो पीढ़ियों से ऐसे जंगलों में रह रहे हैं, लेकिन जिनके अधिकारों को दर्ज नहीं किया जा सका है। यह अधिनियम वन भूमि के संबंध में इस प्रकार निहित वन अधिकारों और ऐसी मान्यता और निहित करने की प्रक्रिया के लिए आवश्यक साक्ष्य की प्रकृति को दर्ज करने के लिए एक रूपरेखा प्रदान करता है।

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