केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय को पिपरहवा उत्खनन से प्राप्त पवित्र बौद्ध अवशेषों की अंतर्राष्ट्रीय नीलामीकर्ता कंपनी सोथबी हांगकांग इकाई द्वारा की जाने वाली नीलामी स्थगित कराने में सफलता मिली है। यह नीलामी आज 7 मई, 2025 को निर्धारित थी।
पिपरहवा पुरातात्विक खुदाई से प्राप्त अवशेषों में महात्मा बुद्ध की अस्थियों के टुकड़े, सेलखड़ी और स्फटिक से निर्मित ताबूत, बलुआ पत्थर का संदूक और अर्पित किये गये स्वर्ण आभूषण तथा रत्न इत्यादि शामिल हैं। वर्ष 1898 में ब्रिटिश औपनिवेशिक इंजीनियर विलियम क्लैक्सटन पेप्पे द्वारा वहां उत्खनन कराया गया था। एक ताबूत पर ब्राह्मी लिपि में उत्कीर्ण अभिलेख से पुष्टि हुई थी कि ये बुद्ध के अवशेष हैं, जिन्हें शाक्य वंश द्वारा वहां स्थापित किया गया था। इनमें से अधिकांश अवशेषों को 1899 में भारतीय संग्रहालय, कोलकाता में स्थानांतरित कर दिया गया था और भारतीय कानून के अंतर्गत इन्हें ‘एए’ श्रेणी के पुरावशेषों के रूप में वर्गीकृत किया गया, जिन्हें हटाना या बेचना प्रबंधित किया गया। अस्थि अवशेषों का एक भाग सियाम (वर्तमान थाईलैंड) के नरेश को उपहार में दिया गया था, जबकि डब्ल्यूसी पेप्पे के परपोते क्रिस पेप्पे के पास रहे बुद्ध के अंतिम संस्कार के रत्नों का एक हिस्सा नीलामी के लिए सूचीबद्ध किया गया था।
मीडिया रिपोर्टों में नीलामी के बारे में जानकारी मिलने पर संस्कृति मंत्रालय ने तुरंत निम्नलिखित कार्रवाई शुरू की:
2 मई, 2025 को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के महानिदेशक ने हांगकांग के महावाणिज्य दूतावास को पत्र लिखकर नीलामी तत्काल रोकने का अनुरोध किया।
उसी दिन एक द्विपक्षीय बैठक के दौरान, संस्कृति मंत्री श्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने ब्रिटेन की संस्कृति, मीडिया और खेल मंत्री लीसा नैंडी के समक्ष यह मामला उठाया तथा अवशेषों के सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व पर जोर देते हुए तत्काल कार्रवाई का आग्रह किया।
5 मई, 2025 को संस्कृति सचिव ने इस विषय में आगे के कदमों पर चर्चा के लिए एक समीक्षा बैठक बुलाई।
उसी दिन सोथबी को उसके प्रतिनिधि सुश्री आइवी वोंग और जूलियन किंग के माध्यम से और क्रिस पेप्पे को कानूनी नोटिस जारी कर, नीलामी रोकने को कहा गया।
विदेश मंत्रालय से अनुरोध किया गया कि वह अपने पश्चिम-यूरोप और पूर्वी एशिया प्रभागों के माध्यम से ब्रिटेन और हांगकांग स्थित दूतावासों से संपर्क कर नीलामी रोकना सुनिश्चित करे।
5 मई, 2025 को सोथबी हांगकांग ने ईमेल द्वारा कानूनी नोटिस स्वीकार करते हुए आश्वासन दिया कि मामला विचाराधीन है और इस पर लिखित उत्तर दिया जाएगा।
6 मई, 2025 को संस्कृति सचिव के नेतृत्व में एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल ने इस विषय पर सोथबी प्रतिनिधियों के साथ चर्चा की। प्रतिनिधिमंड़ल में विदेश मंत्रालय के पूर्वी एशिया प्रभाग के संयुक्त सचिव और हांगकांग में भारत के महावाणिज्यदूत शामिल थे। प्रतिनिधिमंडल ने रेखांकित किया कि ये अवशेष सामान्य कलाकृतियां नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लाखों बौद्ध धर्मालंबियों के पवित्र महत्व की वस्तुएं हैं। इस बात पर भी ज़ोर दिया गया कि ये बौद्ध अवशेष सही मायने में भारत के हैं, जहां से इन्हें औपनिवेशिक काल में ले जाया गया था।
6 मई, 2025 को देर शाम सोथबी की हांगकांग इकाई ने ईमेल द्वारा पिपरहवा अवशेषों की नीलामी स्थगित करने की सूचना दी तथा इस पर आगे चर्चा का प्रस्ताव रखा। इसके बाद में नीलामी पृष्ठ को सोथबी की वेबसाइट से हटा दिया गया।
बौद्ध अवशेषों की नीलामी रोकने के मंत्रालय के प्रयासों को यूनेस्को की स्थायी प्रतिनिधि क्रिस्टा पिक्कट, यूनेस्को निदेशक, भारत, श्रीलंका और अन्य देशों के बौद्ध संगठनों तथा प्रधानमंत्री के पोर्टल और राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया के साथ प्रतिनिधित्व दायर करने वाले प्रोफेसर नमन आहूजा का समर्थन मिला।
संस्कृति मंत्रालय अब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण और विदेश मंत्रालय के सहयोग से बौद्ध अवशेषों को भारत वापस लाने के लिए सभी हितधारकों के साथ बातचीत करेगा।