उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के उपभोक्ता मामले विभाग ने 22 सितंबर 2025 से प्रभावी जीएसटी दरों में संशोधन के मद्देनजर एक संशोधित परामर्श जारी किया है। विधिक माप-विज्ञान (पैकेज्ड कमोडिटीज) नियम 2011 के नियम 33 के अंतर्गत , केंद्र सरकार ने उद्योग पर अनुपालन का बोझ कम करने के लिए ढील दी है और यह सुनिश्चित किया है कि कम जीएसटी का लाभ उपभोक्ताओं तक पहुँचे।
परामर्श के अनुसार निर्माता, पैकर्स और आयातक 22 सितंबर 2025 से पहले निर्मित बिना बिके पैकेजों पर स्वेच्छा से संशोधित मूल्य स्टिकर लगा सकते हैं, बशर्ते कि पैकेज पर छपी मूल एमआरपी अस्पष्ट न हो। यह स्पष्ट किया गया है कि नियम इस तरह के पुनः स्टिकर लगाने को अनिवार्य नहीं बनाते हैं और यह उन कंपनियों के लिए पूरी तरह से वैकल्पिक है, जो संशोधित मूल्य घोषित करना चाहती हैं।
इसके अलावा नियम 18(3) के अंतर्गत दो समाचार पत्रों में संशोधित एमआरपी प्रकाशित करने की आवश्यकता को समाप्त कर दिया गया है। इसके बजाय, निर्माताओं और आयातकों को अब केवल थोक विक्रेताओं और खुदरा विक्रेताओं को संशोधित मूल्य सूची देनी होगी। इसकी प्रतियाँ केंद्र सरकार में विधिक माप विज्ञान निदेशक और राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में विधिक माप विज्ञान नियंत्रकों को भेजी जाएँगी। इससे अनुपालन सरल होगा और उद्योग पर प्रक्रियात्मक बोझ कम होगा।
परामर्श में जीएसटी संशोधन से पहले से छपी पुरानी पैकेजिंग सामग्री या रैपरों को 31 मार्च 2026 तक या स्टॉक समाप्त होने तक जो भी पहले हो तक उपयोग की भी अनुमति दी गई है। कंपनियाँ ऐसी पैकेजिंग पर किसी भी उपयुक्त स्थान पर मुहर, स्टिकर या ऑनलाइन प्रिंटिंग करके अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) को संशोधित कर सकती हैं।
इसके अलावा सरकार ने निर्माताओं, पैकर्स और आयातकों को सलाह दी है कि वे डीलरों, खुदरा विक्रेताओं और उपभोक्ताओं को संशोधित जीएसटी दरों के बारे में सूचित करने के लिए कदम उठाएँ। उन्हें उपभोक्ता जागरूकता सुनिश्चित करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक, प्रिंट और सोशल मीडिया सहित सभी संभव संचार माध्यमों का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया गया है।
यह कदम उद्योगों पर अनुपालन का अत्यधिक बोझ न पड़े और उपभोक्ताओं को जीएसटी में कमी का अपेक्षित लाभ मिले यह सुनिश्चित करते हुए व्यापार में आसानी और उपभोक्ता संरक्षण के बीच संतुलन बनाता है।