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बौद्ध धर्म के अनुयायियों की बड़ी संख्या को देखते हुए महाराष्ट्र बुद्ध के मूल्यों को बढ़ावा देने में अग्रणी भूमिका निभा सकता है: किरेन रिजिजू

‘बड़ी बौद्ध आबादी के साथ महाराष्ट्र एक ऐसा महत्वपूर्ण क्षेत्र है जहां बुद्ध के सिद्धांतों के प्रसार के लिए कोई भी आंदोलन राष्ट्रव्यापी स्तर पर असर डाल सकता है।’ यह बात केन्द्रीय अल्पसंख्यक कार्य और संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने आज मुम्बई के नेहरू विज्ञान केन्द्र में आयोजित एक दिवसीय सम्मेलन ‘बुद्धाज मिडिल पाथ-गाइड फॉर ग्लोबल लीडरशिप’ को संबोधित करते हुए कही। केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय और अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलन ने संयुक्त रूप से इस कार्यक्रम का आयोजन किया।

किरेन रिजिजू ने जोर देकर कहा कि महाराष्ट्र में बौद्ध धर्म को मजबूती पूरे देश में सकारात्मक रूप से प्रतिबिंबित हो सकता है। उन्होंने प्रधानमंत्री की हाल की पहलों के बारे में भी बताया, जिसमें भारत सरकार द्वारा बुद्ध पूर्णिमा का व्यापक उत्सव शामिल है। यह बौद्ध मूल्यों को बढ़ावा देने की प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है। उन्होंने कहा, ‘संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय संघ में प्रधानमंत्री के भाषण बुद्ध के मूल्यों, विशेष रूप से करुणा और सेवा को लगातार रेखांकित करते हैं और उनकी वैश्विक प्रासंगिकता को दर्शाते हैं।

किरेन रिजिजू ने प्रधानमंत्री को उद्धृत करते हुए कहा कि जब बुद्ध के मूल्यों- परोपकार और करुणा जोड़ा जाता है, तभी कोई देश वैश्विक नेता बन सकता है और इन मूल्यों की अनुपस्थिति में केवल वैश्विक मुद्दे उभरेंगे, शांति नहीं।

केंद्रीय मंत्री ने महाराष्ट्र में बौद्ध समुदाय की सराहना की और बुद्ध के मूल्यों को अपनाने के लिए और अधिक लोगों को जोड़ने के लिए ठोस प्रयास करने का आग्रह किया।

किरेन रिजिजू ने डॉ. बी. आर. अम्बेडकर को भी श्रद्धांजलि अर्पित की, जिन्होंने भारतीय संविधान का सावधानीपूर्वक मसौदा तैयार किया था, जो देश के ढांचे और लोगों के प्रति उनके समर्पण का प्रमाण है। उन्होंने बौद्ध समुदाय की मदद करने के उद्देश्य से कई सरकारी कल्याणकारी योजनाओं का भी उल्लेख किया।

अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ के महासचिव शरत्से खेनसुर जंगचुप चोएडे ने बुद्ध की शिक्षाओं के प्रति गहरा सम्मान व्यक्त किया। अहिंसा की परिवर्तनकारी शक्ति पर जोर देते हुए, महासचिव ने इस बात पर प्रकाश डाला कि इस सिद्धांत में गहराई से जाने पर दया (करुणा) और करुणा (दया और सहानुभूति) का भाव पैदा होता है। उन्होंने इस विश्वास को भी उजागर किया कि केवल बुद्ध की शिक्षाएं ही आज दुनिया के सामने आने वाली गंभीर समस्याओं का एक व्यवहार्य समाधान प्रदान कर सकती हैं।

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष इकबाल सिंह लालपुरा ने कहा कि कैसे भारत कई धर्मों और आस्थाओं की जन्मस्थली रहा है और कैसे यह हमेशा प्रेम और करुणा का उपदेश देने के लिए खड़ा रहा जबकि बाकी दुनिया सत्ता हासिल करने में लगी रही।

दलित इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के संस्थापक अध्यक्ष डॉ. मिलिंद कांबले (पद्म श्री) ने बुद्ध की शिक्षाओं का पालन करने का आग्रह किया, और अपना स्वयं का मार्ग दर्शक होने के सिद्धांत पर जोर दिया। उन्होंने यह भी बताया कि डॉ. बी. आर. अम्बेडकर ने कई चुनौतियों का सामना करने के बावजूद अपने पूरे जीवन काल में कभी हिंसा का समर्थन नहीं किया।

उन्होंने अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजातीय (एसटी) उद्यमिता के लिए एक व्यापक परितंत्र के विकास पर जोर दिया। उन्होंने बताया कि देश के 18 प्रतिशत उद्यमी आज इन समुदायों से आते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि बौद्ध धर्म के स्थापित मूल्य बुद्ध की शिक्षाओं से प्रभावित देशों में संघर्ष के स्तर को कम से कम बनाए रखने में योगदान करते हैं।

इस सम्मेलन में आधुनिक बौद्ध धर्म में डॉ. बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर के अमूल्य योगदान को मान्यता देते हुए उनकी विरासत को भी श्रद्धांजलि दी गई। बौद्ध मूल्यों और सिद्धांतों को बढ़ावा देने में उनके प्रयासों को वैश्विक नेतृत्व और नैतिक शासन पर चल रहे परिचर्चा के अभिन्न अंग के रूप में मनाया गया।

इस कार्यक्रम में सम्मेलन के दौरान पैनल चर्चा के तीन सत्र भी शामिल रहे: आधुनिक समय में बुद्ध धम्म की भूमिका और प्रासंगिकता; बेहतरीन तकनीक तथा नए युग के नेतृत्व और बुद्ध धम्म के कार्यान्वयन का महत्व।

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