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नोटरी (संशोधन) विधेयक का मसौदा हितधारकों की सलाह के लिये जारी किया गया

नोटरियों के पेशे को नियमबद्ध करने के लिये संसद में नोटरी अधिनियम, 1952 को कानून का दर्जा दिया गया था। नोटरी अधिनियम, 1952 के प्रावधानों और नियमों के तहत केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकारों को यह अधिकार है कि वे निर्धारित योग्यता रखने वाले व्यक्तियों को नोटरी के रूप में नियुक्त कर सकती हैं।

नोटरी अधिनियम, 1952 और नियमों के मौजूदा प्रावधानों के तहत, नोटरियों के काम करने के प्रमाणपत्र के नवीनीकरण की कोई बाध्यता नहीं थी। एक बार नोटरी नियुक्त हो जाने के बाद उनका नवीनीकरण असीमित बार किया जा सकता था। केंद्र सरकार और राज्य सरकारों द्वारा नियुक्त नोटरियों की संख्या तय होती है, जैसा कि नोटरी नियमावली, 1956 की अनुसूची में दिया गया है। इसके अलावा, इन नोटरियों को एक खास क्षेत्र में नियुक्त किया जाता है, जिसके तहत यह ध्यान में रखा जाता है कि उस विशेष स्थान पर नोटरियों की क्या व्यापारिक आवश्यकता और जरूरत है। ऐसा इसलिये किया जाता है, ताकि नोटरियों की भरमार न हो जाये।

ऐसा महसूस किया जा रहा था कि उन युवा वकीलों को भी यह अवसर दिया जाना चाहिये, जो नोटरी पब्लिक बनना चाहते हैं, ताकि उन्हें अपनी पेशेवराना कुशलता बढ़ाने में मदद मिले और वे ज्यादा कारगर तरीके से कानूनी सहायता दे सकें।

उपरोक्त को ध्यान में रखते हुये, यह प्रस्ताव किया गया है कि नोटरियों का कुल कार्यकाल पंद्रह वर्ष तक सीमित कर दिया जाये। पहली नियुक्ति पांच वर्षों के लिये और नवीनीकारण पांच-पांच वर्षों के लिये दो बार किया जाये। इस तरह असीमित नवीनीकरण को खत्म करने का प्रस्ताव किया गया है, ताकि युवा वकीलों को नोटरी के रूप में काम करने का मौका मिल सके। इस प्रस्ताव के जरिये नोटरी पब्लिक का काम करने वाले वकीलों का बेहतर विकास होगा और काम नियबद्ध तरीके से होगा। इसके जरिये वकालत के पेशे की जरूरतें भी पूरी होंगी।

नोटरियों के हितों की रक्षा करने और नोटरियों कीकिसी भी प्रकार कीकमी से बचने के लिये, प्रस्ताव किया गया है कि तीसरे या उससे अधिक कार्यकाल के प्रमाणपत्र के नवीनीकारण के जो आवेदन मिले हों तथा जिनकी वैधानिकता नोटरी (संशोधन) अधिनियम, 2021 के लागू होने के पहले समाप्त हो रही हो, उन आवेदनों पर विचार किया जायेगा। इसके अलावा, नोटरी (संशोधन) अधिनियम, 2021 के लागू होने के पहले जिन नोटरियों के प्रमाणपत्रों का नवीनीकरण होकर उन्हें जारी किया जा चुका है, वे भी उस नवीनीकरण के समाप्त होने की तारीख तक वैध माने जायेंगे।

नोटरी अधिनियम, 1952 की धारा 10 के तहत सक्षमसरकार को यह अधिकार है कि वह नोटरी रजिस्टर से नोटरी पब्लिक का नाम हटा सकती है। यह कदम उस समय उठाया जा सकता है, जब नोटरी के ऊपर निर्धारित मानकों के तहत जांच चल रही हो, उसे अपने पेशे के साथ कदाचार का दोषी पाया गया हो या सरकार की दृष्टि में वह गलत आचरण का दोषी हो। इन मामलों में सरकार अगर उसे नोटरी के रूप में काम करने के अयोग्य मान लेगी, तो उसे हटाया जा सकता है। बहरहाल, नोटरी अधिनियम में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जिसके तहत उस नोटरी का प्रमाणपत्र निलंबित किया जा सके, जिसके खिलाफ शिकायत मिली हो या जांच अधूरी हो। परिणामस्वरूप, कुछ मामलों में, प्रथम दृष्टया कदाचार का मामला बनने पर भी, नोटरी जांच चलने के दौरान अपने काम पर बना रहता है।

इसलिये नोटरी अधिनियम, 1952 में यह प्रावधान करने का प्रस्ताव है, जिसके तहत सक्षम सरकार उस नोटरी पब्लिक का प्रमाणपत्र निलंबित कर सकती है, जिसके खिलाफ कदाचार की शिकायत मिली हो। सरकार जांच चलने की अवधि तक कार्रवाई कर सकती है।

यह जरूरत भी महसूस की गई कि डिजिटलीकरण की शुरुआत हो जाने पर नोटरी पब्लिक के दस्तावेजों का भी डिजिटलीकरण किया जाये और उन्हें डिजिटल स्वरूप में सुरक्षित किया जाये, जैसा कि नियमों में दिया गया हो। इसका मकसद यही है कि नोटरी कार्रवाई के दौरान कदाचार को रोका जा सके और आम जनता के हितों की रक्षा हो सके। उपरोक्त उद्देश्य के लिये, नोटरियों के कार्यों के डिजिटलीकरण का प्रस्ताव किया गया है।

उपरोक्त लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये, नोटरी अधिनियम, 1952 के संशोधन का प्रस्ताव किया गया है। प्रस्तावित विधेयक की मुख्य विशेषतायें संक्षेप में इस प्रकार हैं:-

विधेयक के मसौदे में नोटरी के कामकाज सम्बंधी प्रमाणपत्रों के नवीनीकरण को सीमित करने का प्रस्ताव है, यानी पांच वर्ष की मूल नियुक्ति के बाद पांच-पांच वर्ष के दो नवीनीकरण होंगे।
काम करने का प्रमाणपत्र निलंबित करने का प्रस्ताव, बशर्ते कि कदाचार का मामला बनता हो। यह जांच सक्षम सरकार करेगी।
नोटरियों के कामकाज का डिजिटलीकरण।

विधायी-पूर्व परामर्श प्रक्रिया के सिलसिले में उपरोक्त विधेयक के मसौदे की प्रति को विधि कार्य विभाग की वेबसाइट (https://legalaffairs.gov.in/ ) पर अपलोड किया गया है। इस पर टिप्पणियां/विचार 15 दिसंबर, 2021 तक दिये जा सकते हैं।

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