आषाढ़ मास के गुप्त नवरात्र 29 जून तक रहेंगे। एक वर्ष में चार नवरात्र आते हैं। चैत्र और आश्विन मास के नवरात्र सामान्य रहते हैं, जबिक माघ और आषाढ़ मास के नवरात्र गुप्त रहते हैं। धर्म शास्त्रों के अनुसार इन दिनों दस महाविद्याओं की आराधना की जाती है। ये दस महाविद्याएं हैं- काली, तारा देवी, त्रिपुर-सुंदरी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, त्रिपुरी भैरवी, मां धूमावती, मां बगलामुखी, मातंगी व कमला देवी।
दिव्योर्वताम सः मनस्विता: संकलनाम। त्रयी शक्ति ते त्रिपुरे घोरा छिन्न्मस्तिके च।। देवी, अप्सरा, यक्षिणी, डाकिनी, शाकिनी और पिशाचिनी आदि में सबसे सात्विक और धर्म का मार्ग है ‘देवी’ की पूजा, साधना और प्रार्थना करना। कैलाश पर्वत के ध्यानी की अर्धांगिनी सती ने दूसरा जन्म पार्वती के रूप में लिया था। इनके दो पुत्र हैं गणेश और कार्तिकेय। मां पार्वती अपने पूर्व जन्म में सती थीं। नौ दुर्गा भी पार्वती का ही रूप हैं। इस माता सती और पार्वती की पूजा-साधना करना सनातन धर्म का मार्ग है बाकी की पूजा आराधना सनातन धर्म का हिस्सा नहीं है।
शास्त्रों अनुसार इन दस महाविद्या की नित्य पूजा अर्चना करने से लंबे समय से चली आ रही बीमार, भूत-प्रेत, अकारण ही मानहानी, बुरी घटनाएं, गृहकलह, शनि का बुरा प्रभाव, बेरोजगारी, तनाव आदि सभी तरह के संकट तत्काल ही समाप्त हो जाते हैं और व्यक्ति परम सुख और शांति पाता है। इन माताओं की साधना कल्प वृक्ष के समान शीघ्र फलदायक और सभी कामनाओं को पूर्ण करने में सहायक मानी गई है।
उत्पत्ति कथा : पुराणों अनुसार जब भगवान शिव की पत्नी सती ने दक्ष के यज्ञ में जाना चाहा तब शिवजी ने वहां जाने से मना किया। इस इनकार पर माता ने क्रोधवश पहले काली शक्ति प्रकट की फिर दसों दिशाओं में दस शक्तियां प्रकट कर अपनी शक्ति की झलक दिखला दी। इस अति भयंकरकारी दृश्य को देखकर शिवजी घबरा गए। क्रोध में सती ने शिव को अपना फैसला सुना दिया, ‘मैं दक्ष यज्ञ में जाऊंगी ही। या तो उसमें अपना हिस्सा लूंगी या उसका विध्वंस कर दूंगी।’
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हारकर शिवजी सती के सामने आ खड़े हुए। उन्होंने सती से पूछा- ‘कौन हैं ये?’ सती ने बताया,‘ये मेरे दस रूप हैं। आपके सामने खड़ी कृष्ण रंग की काली हैं, आपके ऊपर नीले रंग की तारा हैं। पश्चिम में छिन्नमस्ता, बाएं भुवनेश्वरी, पीठ के पीछे बगलामुखी, पूर्व-दक्षिण में धूमावती, दक्षिण-पश्चिम में त्रिपुर सुंदरी, पश्चिम-उत्तर में मातंगी तथा उत्तर-पूर्व में षोड़शी हैं और मैं खुद भैरवी रूप में अभयदान देने के लिए आपके सामने खड़ी हूं।’ यही दस महाविद्या अर्थात् दस शक्ति है। बाद में मां ने अपनी इन्हीं शक्तियां का उपयोग दैत्यों और राक्षसों का वध करने के लिए किया था।
नौ दुर्गा : 1.शैलपुत्री, 2.ब्रह्मचारिणी, 3.चंद्रघंटा, 4.कुष्मांडा, 5.स्कंदमाता, 6.कात्यायनी, 7.कालरात्रि, 8.महागौरी और 9.सिद्धिदात्री।
दस महा विद्या : 1.काली, 2.तारा, 3.त्रिपुरसुंदरी, 4.भुवनेश्वरी, 5.छिन्नमस्ता, 6.त्रिपुरभैरवी, 7.धूमावती, 8.बगलामुखी, 9.मातंगी और 10.कमला।
प्रवृति के अनुसार दस महाविद्या के तीन समूह हैं। पहला:- सौम्य कोटि (त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, मातंगी, कमला), दूसरा:- उग्र कोटि (काली, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी), तीसरा:- सौम्य-उग्र कोटि (तारा और त्रिपुर भैरवी)।
गुप्त नवरात्र में विशेष रूप से तंत्र-मंत्र से संबंधित उपासना की जाती है। महाविद्याओं की पूजा पूरे विधि-विधान के साथ ही की जानी चाहिए, अन्यथा पूजा निष्फल हो सकती है या पूजा का विपरीत असर भी हो सकता है।
जो भक्त गुप्त नवरात्र में देवी मां की पूजा करते हैं, उन्हें ब्रह्मचर्य का पालन विशेष रूप से करना चाहिए। घर में साफ-सफाई का ध्यान रखें। तामसिक भोजन न करें, फलाहार करें। अधार्मिक विचारों और कामों से बचें। घर में क्लेश न करें।
चार नवरात्र ऋतुओं के संधिकाल में आते हैं। संधिकाल यानी एक ऋतु के जाने के और दूसरी ऋतु के आने समय। ऐसे समय में मौसमी बीमारियों का असर बढ़ जाता है। इस समय में खान-पान से संबंधित सावधानी रखनी चाहिए। नवरात्र में व्रत-उपवास करने से खान-पान के संबंध में होने वाली लापरवाही से बचा जा सकता है। इन दिनों में ऐसे खाने से बचना चाहिए, जो आसानी से पचता नहीं है। अधिक से अधिक फलाहार करना चाहिए।