विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, एंटामोइबा हिस्टोलिटिका मनुष्यों में परजीवी बीमारी के कारण रुग्णता (अस्वस्थता) और मृत्यु का तीसरा प्रमुख कारण है।
इससे अमीबायसिस या अमीबा पेचिश होता है जो विकासशील देशों में आम तौर पर प्रचलन में हैं। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के शोधकर्ताओं की एक टीम ने अमीबायसिस की वजह बने प्रोटोजोआ के खिलाफ नई दवा के अणु विकसित किए हैं।
यह प्रोटोजोआ प्रकृति में अवायवीय या कम हवा में जीवित रहने वाला है, जो ऑक्सीजन की अधिकता में जीवित नहीं रह सकता है। हालांकि, संक्रमण के दौरान यह मानव शरीर के अंदर ऑक्सीजन की तेज बढ़ोतरी का सामना करता है। यह जीव ऑक्सीजन की अधिकता से उत्पन्न तनाव का मुकाबला करने के लिए बड़ी मात्रा में सिस्टीन का निर्माण करता है।
यह प्रोटोजोआ रोगाणु सिस्टीन को ऑक्सीजन के उच्च स्तर के खिलाफ अपने रक्षा तंत्र में आवश्यक अणुओं में से एक के रूप में तैनात करता है। एंटामोइबा सिस्टीन को संश्लेषित करने के लिए दो महत्वपूर्ण एंजाइमों का इस्तेमाल करता है। जेएनयू के शोधकर्ताओं ने इन दोनों अहम एंजाइमों की आणविक संरचनाओं की विशेषता बताई और उन्हें निर्धारित किया है। इंडिया साइंस वायर के साथ बातचीत करते हुए जेएनयू में स्कूल ऑफ लाइफ साइंसेज के प्रमुख शोधकर्ता प्रोफेसर समुद्राल गौरीनाथ ने बताया कि उन्होंने भी दोनों एंजाइमों में से एक ओ-एसिटाइल एल-सेरीन सल्फहाइड्रिलेज (ओएएसएस) के संभावित अवरोधकों की सफलतापूर्वक जांच की है। उन्होंने कहा कि इनमें से कुछ अवरोधक अपनी पूरी क्षमता से इस जीव के विकास को रोक सकते हैं।
डॉ. गौरीनाथ ने बताया कि सिस्टीन बायोसिंथेसिस ई. हिस्टोलिटिका के अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण है और यह समान प्रोटोजोआ परजीवी हो सकता है। उन्होंने कहा कि उनका रास्ता बाधित करते हुए उन्हें साधा जा सकता है जिसे हमने सफलतापूर्वक किया है। डॉ. गौरीनाथ ने कहा कि पहचान किए गए अणु दवा के अणुओं का विकास करने में मदद कर सकते हैं।
इस शोध दल में सुधाकर धरावत, रामचंद्रन विजयन, खुशबू कुमारी और प्रिया तोमर शामिल हैं। शोध अध्ययन को यूरोपियन जर्नल ऑफ मेडिसिनल केमिस्ट्री पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।
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