झारखंड के खूँटी ज़िले के माहिल गाँव में रहनेवाले एक दिव्यांग किसान दम्पत्ति ने अपने जोश और जज़्बे से खेती किसानी के काम में अच्छे-अच्छों को पीछे छोड़ दिया है। माहिल गांव के खेतों में धान की रोपाई इस दिव्यांग दंपति के बगैर पूरी नही होती। बेरोज़गारी से हताश होने वाले लोगों के लिए यह दंपती आज नज़ीर बन गया है।
बचपन से पोलियो के शिकार अजय उरांव और उनकी पत्नी रेखा देवी ने कभी अपनी दिव्यांगता को सफलता की राह में आड़े आने नहीं दिया। कड़ी मेहनत से खेतों में फसल उगाना दोनों का जुनून है। झारखंड के खूंटी ज़िले के माहिल गांव के खेतों में धान की रोपाई इस दिव्यांग दंपति के बगैर पूरी नहीं होती। देखने वालों को यूं लगता है कि शारीरिक रूप से अक्षम है ये दंपत्ती। लेकिन बैसाखी के सहारे खड़े होकर खेतों में ये ऐसे कुदाल चलाते हैं मानों कुदाल चलाना तो उनके लिए बाएं हाथ का काम हो।
अजय एक दिन में कई खेतों को कुदाल से ही खोदकर तैयार कर लेते हैं । दिव्यांग अजय उरांव मात्र एक पैर से साइकिल की सवारी भी कर लेते हैं।अजय उरांव की पत्नी रेखा देवी भी किसी से कम नही है। खेत मे चाहे धान के बिचड़े उखाड़ना हो या धान की रोपाई करनी हो वे सभी काम में एक्सपर्ट हैं।
यह दम्पत्ती अपने बच्चों की परवरिश भी दिलजान से कर रहा है और उन्हें बेहतर से बेहतर शिक्षा दिला रहा है। खूंटी के येदिव्यांग किसान दंपति अपनी मेहनत की बदौलत अब आर्थिक समृद्धि की ओर है जिसको देखकर माहिल गांव के लोग इनके जोश और जज़्बे को सलाम करतें हैं।
अजय उरांव कहतें है कि आदमी शरीर से नहीं मन से दिव्यांग होता है। यकीनन यह वाक्य सभी के लिए एक सबक है। बेरोज़गारी और नाकामी के लिए बहाने बहुत हैं लेकिन तरक्की का एक ही मन्त्र है परिश्रम और सिर्फ परिश्रम। चाहे वो दिव्यांग हो या कोई और।