आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी के अगले दिन द्वादशी तिथि को वासुदेव द्वादशी मनाई जाती है। प्रचलित मान्यताओं के अनुसार, इस दिन व्रत रखकर विधि-विधान से भगवान श्रीकृष्ण और माता लक्ष्मी की पूजा करने से जाने-अनजाने में किए गए सभी पापों से मुक्ति मिलती है। इसके साथ ही श्रीकृष्ण और माता लक्ष्मी की कृपा से जीवन में यश-कीर्ति और खुशहाली आती है। हिंदू पंचांग के अनुसार, आज द्वादशी और त्रयोदशी दोनों तिथियां हैं। ऐसे में पूजा प्रात:काल करना शुभ माना जा रहा है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, माता देवकी ने भगवान कृष्ण के लिए यह व्रत रखा था, इसलिए इस दिन श्रीकृष्ण की पूजा का विशेष महत्व बताया जाता है। यह न सिर्फ पापों से मुक्ति दिलाता है, बल्कि संतान प्राप्ति के लिए इस व्रत को किया जाता है। चलिए जानते हैं वासुदेव द्वादशी की व्रत विधि, पूजा विधि और महत्व।
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व्रत व पूजा विधि
वासुदेव द्वादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
इसके बाद एक चौकी पर श्रीकृष्ण और माता लक्ष्मी की प्रतिमा को स्थापित करना चाहिए।
अब फल, फूल, धूप, दीप, अक्षत, दूध, दही और पंचामृत इत्यादि से विधिवत पूजन करें।
माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु के सहस्त्रनाम का जप करने से सभी कष्ट दूर होते हैं।
आखिर में आरती करके भगवान श्रीकृष्ण और माता लक्ष्मी से अन्न, जल व धन की कामना करें।
इस दिन दिनभर व्रत रखें, शाम को फिर से पूजा-आरती करें और फलाहार करें।
अगली सुबह पूजा-पाठ के बाद जरूरतमंदों को दान दें और उसके बाद भोजन ग्रहण करें।
वासुदेव द्वादशी महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, वासुदेव द्वादशी का व्रत करने से सिर्फ इस जन्म के ही नहीं, बल्कि पूर्व जन्म के पापों से भी मुक्ति मिलती है। इस व्रत को करने से व्यक्ति की हर मनोकामना पूरी होती है और श्रीकृष्ण व माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के उपासक व्रत रखकर उनकी विधि-पूर्वक पूजा करते हैं। इसके अलावा इस दिन देश के तमाम कृष्ण मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।