“आत्मनिर्भर भारत” के लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में डीआरडीओ ने उद्योग द्वारा डिजाइन, विकास और विनिर्माण के लिए 108 प्रणालियों और उप प्रणालियों की पहचान की

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माननीय प्रधानमंत्री के “आत्मनिर्भर भारत” के आह्वान की प्रतिक्रिया में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने स्वदेशी रक्षा विनिर्माण को मजबूती देने के लिए कई पहल की हैं। इस दिशा में, डीआरडीओ के एक प्रतिनिधिमंडल ने आज रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात की और उन्हें 108 प्रणालियों और उप प्रणालियों के बारे में बताया, जिनकी सिर्फ भारतीय उद्योग द्वारा डिजाइन और विकसित किए जाने के लिए पहचान की गई है। प्रौद्योगिकियों की सूची अनुलग्नक-क में दी गई है। इस पहल से भारतीय रक्षा उद्योग के लिए आत्मनिर्भर भारत के निर्माण की दिशा में कई तकनीक के विकास का मार्ग प्रशस्त होगा।

डीआरडीओ अपनी आवश्यकता के आधार पर इन प्रणालियों के डिजाइन, विकास और परीक्षण के लिए उद्योग को समर्थन भी उपलब्ध कराएगा। आरएंडडी प्रतिष्ठानों, सैन्य बलों और अन्य सुरक्षा एजेंसियों द्वारा इन प्रणालियों से जुड़ी सभी आवश्यकताएं उपयुक्त भारतीय उपक्रम के साथ विकास अनुबंध या उत्पादन ऑर्डर के माध्यम से पूरी की जा सकती हैं। इससे डीआरडीओ को महत्वपूर्ण और आधुनिक प्रौद्योगिकियों तथा प्रणालियों के डिजाइन और विकास पर ध्यान केन्द्रित करने में सहायता मिलेगी।

डीआरडीओ इन प्रणालियों की प्राप्ति के लिए उद्योग के साथ भागीदारी कर रहा है। प्रमुख शस्त्र प्रणालियों के विकास में डीआरडीओ के साथ सहयोग से भारतीय उपक्रम एक स्तर तक परिपक्व हो गए हैं, जहां वे अपने दम पर प्रणालियों का विकास कर सकते हैं। भारतीय उद्योग ‘बिल्ड टू प्रिंट’ भागीदार से ‘बिल्ड टू स्पेसिफिकेशन’ भागीदार में परिवर्तित हो चुका है।

डीआरडीओ के लिए वर्तमान उद्योग आधार में डीपीएसयू, आयुध कारखानों और बड़े उद्योगों के साथ ही 1,800 एमएसएमई शामिल हैं। डीआरडीओ पहले ही विकास सह उत्पादन भागीदारों (डीसीपीपी) के रूप में भारतीय उद्योग को जोड़ने के लिए विभिन्न नीतियों के माध्यम से कई पहल कर चुका है। साथ ही उद्योग को मामूली लागत पर तकनीक की पेशकश कर रहा है और अपने पेटेंट के लिए मुफ्त पहुंच उपलब्ध करा रहा है।

इस पहल से तेजी से उभरते भारतीय रक्षा उद्योग को समर्थन मिलेगा और उद्योग को बड़े स्तर पर “आत्मनिर्भर भारत” की दिशा में योगदान करने में सहायता मिलेगी।

PIB

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