COP28 के दौरान आयोजित एक भारतीय कार्यक्रम में भारतीय हिमालयी क्षेत्र में जलवायु लचीले विकास पर चर्चा की गई

COP28 के दौरान आयोजित एक भारतीय कार्यक्रम में भारतीय हिमालयी क्षेत्र में जलवायु लचीले विकास पर चर्चा की गई

तीन दिसंबर, 2023 को संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन सीओपी 28 में भारत मंडप में आयोजित एक कार्यक्रम में हिमालयी क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन की संवेदनशीलता के प्रभाव और पहलुओं तथा पर्वतीय समुदायों को हरा-भरा और लचीला बनाकर भारतीय हिमालयी क्षेत्र में जलवायु के अनुकूल विकास के तरीकों पर चर्चा की गई।

जलवायु परिवर्तन और स्वच्छ ऊर्जा प्रभाग की प्रमुख डॉ. अनीता गुप्ता ने इस कार्यक्रम के दो सत्रों में चर्चा की अध्यक्षता की। उन्होंने जलवायु परिवर्तन के बिगड़ते प्रभावों को देखते हुए तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता रेखांकित की और विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) द्वारा आयोजित कार्यक्रम में उपस्थित अंतरराष्ट्रीय जनसमूह को भारत की जलवायु परिवर्तन पहल के बारे में जानकारी दी।

पहले सत्र में, स्विट्जरलैंड विकास निगम (एसडीसी); नेपाल के अंतर्राष्ट्रीय एकीकृत पर्वतीय विकास के केंद्र; मणिपुर के पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन निदेशालय; अल्मोड़ा के जीबीपीएनआईएचई के प्रतिनिधियों और डीएसटी ने क्रमशः भारत सरकार की जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना के तहत जलवायु परिवर्तन कार्यक्रम (सीसीपी); भारत में संवेदनशीलता और जोखिम मूल्यांकन; क्रायोस्फीयर पर क्षेत्रीय परिप्रेक्ष्य; मणिपुर में अनुकूलन योजना के लिए जलवायु जोखिम प्रोफ़ाइल और भारतीय हिमालय क्षेत्र (आईएचआर) के सतत विकास के लिए समावेशी जलवायु कार्रवाई को लेकर विचार-विमर्श किया।

हिमाचल प्रदेश सरकार के साथ सह-आयोजित सत्र-2 में, डीएसटी के प्रतिनिधियों ने हिमालयी इको-सिस्टम को बनाए रखने पर राष्ट्रीय मिशन के तहत पहल का प्रदर्शन किया, जबकि हिमाचल प्रदेश सरकार के प्रतिनिधियों ने कृषि और बागवानी में जलवायु-अनुकूल प्रक्रियाओं के साथ पारिस्थितिकीय रूप से उन्मुख अनुकूल गांवों के विकास की दिशा में रूपांतरण के लिए वर्तमान जलवायु नीति युक्तियों; जलवायु जोखिम मूल्यांकन (सीआरए) के बारे में चर्चा की।

पक्षकार देशों का 28वां सम्मेलन 30 नवंबर से 12 दिसंबर 2023 तक संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के दुबई में आयोजित किया जा रहा है, जहां 197 देशों के प्रतिनिधि ग्लोबल वार्मिंग को सीमित करने और भविष्य के जलवायु परिवर्तन की तैयारी के लिए अपने प्रयासों का प्रदर्शन कर रहे हैं। यह पहली बार है जब देशों ने औपचारिक रूप से 2015 पेरिस जलवायु समझौते के तहत अपनी प्रगति का आकलन किया है।

सीओपी 28 के शिष्टमंडलों ने जलवायु परिवर्तन से निपटने की दिशा में आने वाले वर्षों में महत्वपूर्ण सकारात्मक परिणाम अर्जित करने के लिए अनुकूलन और शमन प्रयासों पर भी चर्चा की। ऐसे प्रयास विशेष रूप से उन देशों के लिए महत्वपूर्ण हैं जो अत्यधिक असुरक्षित हैं और एशिया में हिमालय पर्वत श्रृंखला जैसे विश्व के संवेदनशील इको-सिस्टम के लिए भी महत्वपूर्ण हैं।

भारत की जलवायु हिमालय श्रृंखला पर अत्यधिक निर्भर है और भारतीय हिमालय क्षेत्र (आईएचआर) 50 मिलियन से अधिक लोगों के लिए आश्रय स्थल रहा है। हिमालय में किसी भी प्रभाव का न केवल भारत बल्कि पूरे उपमहाद्वीप के लाखों लोगों के जीवन पर असर होगा। इनमें प्राकृतिक कारणों से होने वाले परिवर्तन, मानवजनित उत्सर्जन के परिणामस्वरूप होने वाला जलवायु परिवर्तन और विकासात्मक मार्ग शामिल हैं। इसलिए भारतीय हिमालयी क्षेत्र की संवेदनशीलता का आकलन करना महत्वपूर्ण हो जाता है।

इस कार्यक्रम में विशेषज्ञों ने बेहतर अनुकूलन के लिए जलवायु परिवर्तन और हिमालयी इको-सिस्टम के बीच संपर्कों को बेहतर समझने के लिए राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्य योजना (एनएपीसीसी) के हिस्से के रूप में लॉन्च किए गए हिमालयी इको-सिस्टम को बनाए रखने के लिए राष्ट्रीय मिशन (एनएमएसएचई) के महत्व पर विस्तार से बताया। डॉ. सुशीला नेगी जैसे डीएसटी अधिकारियों और अन्य कार्यक्षेत्र विशेषज्ञों ने इस मिशन को आगे बढ़ाने के तरीकों पर बातचीत की, जिसे विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) जलवायु परिवर्तन के दीर्घकालिक समाधान के लिए कई अन्य केंद्रीय मंत्रालयों और सभी हिमालयी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के सहयोग से मिशन का समन्वयन, कार्यान्वयन और निगरानी कर रहा है।

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