पर्यटन मंत्रालय ने देखो अपना देश वेबिनार श्रृंखला के एक भाग के रूप मेंस्वतंत्रता दिवस पर आधारित वेबिनार आयोजित किए थे जिसका समापन 15 अगस्त 2020 को अखंड भारत के वास्तुकार सरदार वल्लभभाई पटेल को समर्पित एक वेबिनार के आयोजन के साथ भव्य तरीके से हुआ।
कोरोना महामारी के कारण पर्यटन मंत्रालय ने इस वर्ष राष्ट्र को 74वें स्वतंत्रता दिवस 2020के मौके पर नमन करने के लिए वेब स्क्रीन को चुना। पर्यटन मंत्रालय ने राष्ट्र के इस सबसे महत्वपूर्ण दिन को मनाने और सम्मान करने के लिए पांच वेबिनार तैयार किए थे। इन वेबिनारों में स्वतंत्रता आंदोलन, इससे जुड़े महत्वपूर्ण स्थानों और अग्रणी नेताओं को सामूहिक तौर पर याद किया गया जिन्होंने भारत को आजादी दिलाने में उल्लेखनीय भूमिका निभाई थी।
15 अगस्त 2020 को सरदार वल्लभभाई पटेल को समर्पितइस सत्र की शुरूआत सभापति सुश्री रूपिंदर बराड़, अपर महानिदेशक, पर्यटन मंत्रालय की राष्ट्रगान के लिए सभी प्रतिभागियों से उठने के अनुरोध के साथ हुई। उन्होंने बताया कि कैसे वेब स्क्रीन के माध्यम से पर्यटन मंत्रालय विदेशी दासता से मुक्ति के लिए स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदानों, स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े स्थानों आदि को याद कर रहा है।
वेबिनार की शुरूआत गुजरात सरकार में पर्यटन आयुक्त श्री जेनु देवनऔर गुजरात पर्यटन निगम लिमिटेड के प्रबंध निदेशक द्वारा गुजरात में सरदार वल्लभभाई पटेल से जुड़े स्थानों के बारे में जानकारी देने के साथ हुई।
वेबिनार को श्री संजय जोशी,अतिरिक्त कलेक्टर और मुख्य प्रबंधक,स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी,गुजरात सरकार द्वारा प्रस्तुत किया गया। श्री जोशी ने अपनी प्रस्तुति के माध्यम से बताया कि कैसे सरदार पटेल एक दूरदर्शी राजनेता और अखंड भारत के वास्तुकार थे। वेबिनार में सरदार पटेल की स्कूली शिक्षा के शुरुआती दिनों से लेकर,कानून की पढ़ाई के लिए लंदन जाने,वकील के रूप में जीवन, 1916 में बैरिस्टर क्लब में महात्मा गांधी से मुलाकात, 1922, 1924 और 1927 में अहमदाबाद के नगरपालिका अध्यक्ष के रूप में निर्वाचन और अहमदाबाद में स्कूल प्रणाली में उनके किए गए सुधारों, प्राकृति आपदाओं के दौरान लोगों को राहत पहुंचाने में उनकी भूमिकाओं और किसी भी रूप में भ्रष्टाचार या कुशासन से समझौता नहीं करने के उच्च नैतिक सिद्धांतों तक के उनके जीवन के कई पहलुओं को याद किया गया।
इस वेबिनार में शामिल लोगों को सरदार पटेल और उनकी याद में बनाए गए आज भी मौजूद स्मारकों से जुड़े गुजरात के विभिन्न गांवों और कस्बों सेरू-ब-रू कराया गया। इन स्थानों में उनके जन्म स्थान नाडियाद, नाडियाद का पेटलद जहां उन्होंने स्कूली शिक्षा ग्रहण की, गोधरा में बोरसादजहां उन्होंने पहली बार अपना घर बनाया और करमसाड जहां वे रहते थे, को शामिल किया गया।
श्री जोशी ने बारदोली सत्याग्रह आंदोलन के बारे में बताया और यह भी बताया कि उस आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए सरदार वल्लभभाई पटेल को कैसे लाया गया।
वेबिनार में स्टैच्यू ऑफ यूनिटी को भी दिखाया गया जो सरदार पटेल की याद में बनी इस धरती की सबसे ऊंची प्रतिमा है। यह प्रतिमा 182 मीटर ऊंची है। यह दुनिया के सबसे ऊंचे स्मारकों में से एक है। श्री जोशी ने परियोजना,परियोजना की विशेषताओं, तथ्यों,इसकी अहम बातों,केवडिया के आसपास थीम आधारित आकर्षण के निर्माण आदि के बारे में भी बताया।
पर्यटन मंत्रालय ने स्वतंत्रता दिवस के इस अवसर पर अपने अनुभवों को साझा करने के लिए आजादी के पहले जन्म लिए प्रतिष्ठित हस्तियों को आमंत्रित किया। इनमें श्री पदम रोशा जो पूर्वआईपीएस अधिकारी और राष्ट्रीय पुलिस अकादमी के पूर्व निदेशक,जम्मू एवं कश्मीर पुलिस बल के सेवानिवृत्त महानिदेशक शामिल रहे। श्री रोशा1948 में स्वतंत्र भारत के पहले पुलिस बल में शामिल हुए और सीमा सुरक्षा बल की स्थापना करने वाली टीम का हिस्सा थे। अन्य पुरस्कारों के साथ ही उन्हें विशिष्ट सेवा के लिए राष्ट्रपति पदक पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। श्री रोशा उन कई लोगों में से एक हैं,जिन्हें 1947 में देश विभाजन के समय पलायन करने के लिए मजबूर किया गया था। उस समय श्री रोशा लाहौर के सरकारी कॉलेज में पढ़ रहे थे, लेकिन उन्हें अपने पीएचडी के शोध-पत्रों को छोड़ना पड़ा और सीमा पार कर अमृतसर और जालंधर की राह पकड़नी पड़ी। अभी में वे जीवन के 97 वर्ष की आयु में हैं और अक्सर विभाजन के दौरान मिले अपने कठिन अनुभव को याद करते हैं।
वेबिनार में 94 साल की रमा खंडवाल भी मौजूद थी जोभारतीय राष्ट्रीय सेना में 1943 की झांसी की रानी रेजिमेंट में पूर्व द्वितीय लेफ्टिनेंट थीं। उन्होंने मुंबई में सरदार पटेल के साथ मुलाकात के बारे में प्रतिभागियों से बात की। उन्होंने बताया कि दो वर्षों में उनका जीवन कैसे बदल गया। उन्होंने कहा कि द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान उन्होंने एक नर्स के रूप में काम किया और नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साथ उनकी बातचीत हुई। ऐतिहासिक युद्ध के नायकों का अनुभव साझा करने के बाद श्रीमतीरमा खंडवाला ने राष्ट्रवाद में उद्देश्य खोजने, भारत के अनदेखे स्थानों का पता लगाकर उन्हें पर्यटक गाइड में शामिल करने का विचार पेश किया।आज इस उम्र में भी वह पर्यटकों के लिए भारत के इतिहास को दिखाने के लिए प्रेरित हैं। वह यह मानती हैं कि भारत की एकता इसकी सबसे बड़ी विरासत है,जो उसकी जैसी अन्य महिलाओं द्वारा अर्जित की गई है और जो उनके लिए रात के अंधेरे में देखी गई आशा की एक किरण है।
वेबिनार का समापन इस संदेश के साथ हुआ कि स्वतंत्रता आंदोलन के हमारे साहसी नेताओं की तरहहम भीअभी और हमेशा के लिए एकता की शक्ति में मजबूती पा सकते हैं।
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पर्यटन मंत्रालय ने स्वतंत्रता दिवस समारोह के अवसर पर देखो अपना देश वेबिनार श्रृंखला के अंतर्गत स्वतंत्रता दिवस की थीम पर आधारित चौथा वेबिनार “जलियांवाला बाग: स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण मोड़” का आयोजन किया गया।
इस श्रृंखला के अंतर्गत यह 48 वां वेबिनार है। देखो अपना देश वेबिनार श्रृंखला का 48वां वेबिनार, सुश्री किश्वर देसाई, अध्यक्ष, द पार्टिशन म्यूजियम/ आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज और जलियांवाला बाग, 1919 द रियल स्टोरी किताब की लेखिका द्वारा प्रस्तुत किया गया। सुश्री देसाई द्वारा उस भयावह कृत्यों के बारे में बताया गया जिसके कारण सैकड़ों बेगुनाहों की हत्या की गई और कैसे इस सामूहिक नरसंहार ने बाद के दिनों में पूरे देश को ब्रिटिश राज के खिलाफ लड़ने के लिए एकजुट किया। देखो अपना देश वेबिनार श्रृंखला, एक भारत श्रेष्ठ भारत के अंतर्गत भारत की समृद्ध विविधता को प्रदर्शित करने का एक प्रयास है।
इस अवधि के दौरान, जमीनी स्तर की पृष्ठभूमि और परिस्थितियों को आधार बनाते हुए, सुश्री देसाई ने बताया कि कैसे प्रथम विश्व युद्ध के दौरान भारतीय सैनिक, विदेशी धरती के साथ-साथ बंगाल और पंजाब में अंग्रेजों की ओर से लड़ रहे थे और पंजाब औपनिवेशिक विरोधी गतिविधियों का अब तक स्रोत बना हुआ था। बंगाल में हो रहे क्रांतिकारी हमले, जो कि पंजाब में हो रही गड़बड़ियों के साथ मजबूती के साथ जुड़े हुए थे, क्षेत्रीय प्रशासन को लगभग पंगु बनाने के लिए बहुत महत्वपूर्ण थे। 1918 और 1920 के बीच, भारत में इन्फ्लूएंजा महामारी के कारण लाखों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। बहुत से सैनिकों को अलोकतांत्रिक रूप से भर्ती किया गया और उनमें से कुछ ने जबरन भर्ती के खिलाफ अपनी नाराजगी जाहिर करनी शुरू कर दी। 1914 में प्रथम विश्व युद्ध के शुरू होने के बाद, गदर पार्टी के कुछ सदस्य भारतीय स्वतंत्रता के लिए सशस्त्र क्रांति को चिंगारी देने के लिए पंजाब लौट आए। गदर के सदस्यों ने भारत में हथियारों की तस्करी की और भारतीय सैनिकों को अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह के लिए उकसाया।
सुश्री देसाई ने जलियांवाला बाग नरसंहार से पहले अमृतसर और शेष भारत की राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत किया। उन्होंने रॉलेट एक्ट या काला अधिनियम के बारे में बताया जो ब्रिटिश सरकार द्वारा पारित किया गया एक कठोर अधिनियम था, जिसमें पुलिस को बिना किसी कारण के किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने का अधिकार प्रदान कर दिया था। इस अधिनियम का उद्देश्य देश में बढ़ती हुए राष्ट्रवादी लहर पर अंकुश लगाना था। गांधी जी ने लोगों से ऐसे दमनकारी “अधिनियम” के खिलाफ सत्याग्रह करने का आह्वान किया था।
उन्होंने बताया कि कैसे जलियांवाला बाग उस समय एक बंजर भूमि थी जहां पर लोग प्रायः मिलते रहते थे और शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन के लिए उसका उपयोग करते रहते थे। इससे अंग्रेजों में घबराहट फैल गई क्योंकि उन्होंने अब तक कभी किसी प्रकार के प्रतिरोध का सामना नहीं किया था। डॉ. सैफुद्दीन किचलू और डॉ. सत्यपाल, अमृतसर शहर के जाने-माने राष्ट्रीय नेता थे। उन्होंने रॉलेट एक्ट के खिलाफ सत्याग्रह का आयोजन किया। जलियांवाला बाग में हुई शांतिपूर्ण सभा में सभी संप्रदायों के लोगों ने भाग लिया। इससे अंग्रेजों के बीच बहुत सारी भ्रांतियां और गलतफहमी फैल गई। ब्रिटिश सरकार ने डॉ. किचलू और डॉ. सत्यपाल की गिरफ्तारी का आदेश दिया। उनकी गिरफ्तारी की खबर से अमृतसर के लोगों के बीच से कड़ी प्रतिक्रिया आई।
9 अप्रैल 1919 को महात्मा गांधी को भी गिरफ्तार कर लिया गया और लोगों को उनकी गिरफ्तारी के पीछे का कोई भी कारण समझ में नहीं आ रहा था। गांधी जी की गिरफ्तारी की खबर जब 10 अप्रैल को अमृतसर पहुंची तो सड़कों पर बड़ी संख्या में उग्र हुए लोगों की भीड़ जमा हो गई। ब्रिटिश बैंकों में आग लगा दी गई और तीन बैंक प्रबंधकों की हत्या कर दी गई। हिंसा 10 और 11 अप्रैल तक जारी रही। पुलिस द्वारा भीड़ को नियंत्रित करने में असमर्थ होने के बाद, शहर को वास्तविक रूप से मार्शल लॉ के हवाले कर दिया गया। कलेक्टर ने ब्रिगेडियर-जनरल रेजिनाल्ड एडवर्ड डायर को कार्यभार सौंप दिया, जो गोरखा और पठान सैनिकों की टुकड़ी के साथ आए थे।
पंजाब में मार्शल लॉ का शासन बहुत ही कठोर था। डाक पर प्रतिबंध लगा दिया गया। मंदिरों और मस्जिदों में उपासकों का जाना प्रतिबंधित कर दिया गया। जिन लोगों की राजनीतिक संबद्धता संदिग्ध पाई गई थी, उनके घरों में बिजली और पानी की आपूर्ति को रोक दिया गया। इससे भी बदतर स्थिति तब उत्पन्न हुई जब चुनिंदा विद्रोहियों पर सार्वजनिक रूप से कोड़े बरसाए गए; और एक आदेश जारी किया गया जिसमें उन सभी भारतीयों को सड़क पर रेंगने के लिए मजबूर कर दिया गया, जिन्होंने महिला मिशनरी पर हमला होते हुए देखा था।
13 अप्रैल 1919 को डायर ने यह अनुमान लगाया कि एक बड़ा विद्रोह हो सकता है, इसलिए सभी प्रकार की बैठकों पर प्रतिबंध लगा दिया गया। इस नोटिस को व्यापक रूप से फैलाया नहीं गया था, और इसलिए कई ग्रामीण इस बाग में भारतीय त्योहार बैसाखी को मनाने और दो राष्ट्रीय नेताओं, सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी और निर्वासन का शांतिपूर्ण विरोध करने के लिए एकत्रित हुए। डायर और उसके सैनिकों ने बाग में प्रवेश किया, उनके बाद मुख्य प्रवेश द्वार को अवरुद्ध कर दिया, एक ऊंचाई पर स्थित एक जगह पर मोर्चा संभाल लिया और बिना किसी चेतावनी के भीड़ पर दस मिनट तक लगातार गोलीबारी की, उसने अपनी गोलियों का रुख बहुत हद तक उन कुछ खुले हुए फाटकों की ओर रखा जिसके माध्यम से लोग वहां से भागने की कोशिश कर रहे थे, गोलियां तब तक बरसती रही जब तक कि गोला-बारूद लगभग समाप्त नहीं हो गया। लगभग 1,650 राउंड गोलियां चलाई गईं। कई छोटे-छोटे बच्चों की मौत हो गई और केवल दो महिलाओं के ही शव प्राप्त हो सके। इस नरसंहार के तीन महीने बाद, मौतों की संख्या की जानकारी के लिए मृत शरीरों की गिनती की गई। यह एक बहुत बड़ा नरसंहार था और इसमें 1,000 से ज्यादा लोग मारे गए। घायल लोगों को दवा के रूप में भी कोई सहायता प्रदान नहीं की गई। इसमें स्थानीय भारतीय डॉक्टरों ने भाग लिया था।
13 अप्रैल 1919 को, ब्रिटिश सरकार ने पंजाब के अधिकांश क्षेत्रों को मार्शल लॉ के अधीन कर दिया। इस कानून ने कई नागरिक स्वतंत्रताओं को प्रतिबंधित कर दिया, जिसमें विधानसभा की स्वतंत्रता भी शामिल थी; चार से ज्यादा लोगों के इकट्ठा होने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया था। ब्रिटिश सरकार द्वारा इन घटनाओं की जांच के लिए एक समिति का गठन किया गया और हंटर कमीशन रिपोर्ट में अमृतसर की घटनाओं से संबंधित प्राप्त साक्ष्यों को शामिल किया गया। मार्च 1920 में, प्रस्तुत की गई अंतिम रिपोर्ट में, समिति ने सर्वसम्मति से डायर के कार्यों की निंदा की। हालांकि, हंटर समिति ने जनरल डायर के खिलाफ कोई भी दंडात्मक या अनुशासनात्मक कार्रवाई की अनुशंसा नहीं की।
रवींद्रनाथ टैगोर ने इसके विरोध में अपनी ‘नाइटहुड’ की उपाधि का त्याग कर दिया और महात्मा गांधी ने कैसर-ए-हिंद की उपाधि वापस कर दी, जो उन्हें बोअर युद्ध के दौरान उनके काम के लिए अंग्रेजों द्वारा सम्मान के रूप में प्रदान की गई थी।
सुश्री रुपिंदर बरार ने अपने समापन भाषण में, अमृतसर के दर्शनीय स्थलों के बारे में बताया जो कि हवाई, रेल और सड़क के माध्यम से बहुत अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। जलियांवाला बाग, पार्टिशन म्यूजियम, हरिमंदिर साहिब और वाघा बॉर्डर, ग्रैंड ट्रंक रोड के साथ चल रही भारत और पाकिस्तान के बीच की सीमाओं को चिह्नित करती हैं। सूर्यास्त से पहले प्रत्येक दिन आयोजित होने वाली वाघा बॉर्डर सेरेमनी या बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी यहां का मुख्य आकर्षण है। प्रत्येक शाम, सूर्यास्त से ठीक पहले, भारतीय और पाकिस्तानी सेना के सैनिक इस सीमा चौकी पर मिलते हैं, और 30 मिनट के सैन्य सौहार्द और कला प्रदर्शन में शामिल होते हैं। आगंतुक को ढाबों में अद्भुत भोजन का आनंद लेने का अवसर भी प्राप्त होता है।
पर्यटन मंत्रालय अपनी विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत, पर्यटन अवसंरचनाओं और सुविधाओं के विकास पर आवश्यक बल दे रहा है। वर्तमान में, जलियांवाला बाग का जीर्णोद्धार और उन्नयन किया जा रहा है और स्मारक स्थल पर संग्रहालय/ दीर्घाएं और साउंड एंड लाइट शो स्थापित किए जा रहे हैं।
देखो अपना देश वेबिनार श्रृंखला को राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस विभाग, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के साथ तकनीकी साझेदारी में प्रस्तुत किया जा रहा है। वेबिनार के सत्र अब, भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय के सभी सोशल मीडिया हैंडल और https://www.youtube.com/channel/UCbzIbBmMvtvH7d6Zo_ZEHDA/featured पर भी उपलब्ध हैं।